MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

अध्याय - 1

सामाजिक स्तरीकरण का परिचय

(Introduction of Social Stratification)

 

प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।

उत्तर -

विश्व में किसी भी समाज में सभी व्यक्तियों को समान स्थिति व पद प्राप्त नहीं होते अर्थात् सभी समाजों की जनसंख्या अनेक सामाजिक समूहों में विभक्त होती है। आदिम समाजों के अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उन समाजों में भी आयु, लिंग, मुखिया आदि के आधार पर समूहों का विभाजन तथा इसी विभाजन के आधार पर समाज में ऊँच-नीच का भेद भी होता है। इसके बाद समाजों के आकारों में वृद्धि होती गई, सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ जटिलता आती गई और समाज की जनसंख्या अनेक आधारों पर ऊँचे-नीचे स्तरों में बंट गई जिससे कि उच्चता तथा निम्नता की भावना बढ़ी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज के अन्तर्गत विभिन्न समूहों के कुछ स्तरों में विभाजित हो जाने की प्रक्रिया ही सामाजिक स्तरीकरण है। वर्ग और जाति इसी सामाजिक स्तरीकरण के दो प्रमुख रूप हैं।

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Social Stratification)

किसी भी समाज में समानताओं के साथ-साथ विभिन्नतायें भी पाई जाती हैं, जैसे- आयु, भिन्नता, लैंगिक भिन्नता, शैक्षिक भिन्नता, आर्थिक भिन्नता आदि। इन्हीं विभिन्नताओं के कारण समाज में भी सभी लोग एक ही स्तर पर आसीन नहीं हो सकते। वस्तुतः ये विभिन्नतायें उन्हें विभिन्न सामाजिक स्तरों में बाँट देती हैं। इस प्रकार समाज के लोगों के अनेक स्तरों में विभाजित होने की इस प्रक्रिया को ही हम सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं अथवा सामाजिक स्तरीकरण समाज को विभिन्न उच्च और निम्न वर्गों में विभाजित करने वाली एक व्यवस्था है।

रेमण्ड मूरे के अनुसार, "स्तरीकरण समाज का 'उच्च' तथा 'निम्न' सामाजिक इकाइयों में किया गया समतल विभाजन है।"

पी० गिसबर्ट के अनुसार, "सामाजिक स्तरीकरण समाज का उन स्थायी समूहों अथवा श्रेणियों में विभाजन है जो कि उच्चता एवं अधीनता के सम्बन्धों से परस्पर सम्बद्ध होते हैं।"

ऑगबर्न और निमकॉफ के शब्दों में "स्तरीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति और समूह एक स्थायी स्थिति की क्रमबद्धता में विभाजित किये गये हैं।"

टालकॉट पारसन्स के शब्दों में "किसी समाज व्यवस्था में व्यक्तियों का ऊँचे और नीचे क्रम विन्यास में विभाजन ही स्तरीकरण है।"

सदरलैंड एवं वुडवर्ड के अनुसार, "स्तरीकरण केवल अन्तःक्रिया अथवा विभेदीकरण की ही एक प्रक्रिया है, जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे व्यक्तियों की तुलना में उच्च स्थिति 'प्राप्त होती है। "

किंग्सले डेविस के अनुसार, "सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ साधारणतः उन समूहों से लगाया जाता है जो सामाजिक व्यवस्था में विभिन्न स्थितियों को धारण किये हुये हैं।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि स्तरीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था विभिन्न स्तरों में विभाजित होती है। इन स्तरों को उच्चता तथा निम्नता के आधार पर विभाजित किया जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण की विशेषतायें
(Characteristics of Social Stratification)

(1) सामाजिक स्तरीकरण प्रत्येक समाज में पाया जाता है - विश्व में सभी समाजों में, आदिकाल से लेकर आज तक, स्तरीकरण पाया जाता है, यद्यपि इसके आधारों एवं स्वरूपों में अन्तर हो सकते हैं। बोटोमोर के शब्दों में, "समाज का वर्गों अथवा स्तरों में विभाजन जिससे प्रतिष्ठा एवं शक्ति का सोपान बनता है, सामाजिक संरचना का एक सार्वभौमिक तत्व है। "

(2) सामाजिक स्तरीकरण पुरातन व्यवस्था है - सामाजिक स्तरीकरण एक नवीन व्यवस्था न होकर पुरातन व्यवस्था है। यह प्रत्येक काल में किसी न किसी रूप में विद्यमान हो रही है। हाँ, यह अन्तर अवश्य है कि प्राचीन काल में इसके आधार आयु, लिंग, शारीरिक शक्ति तथा जन्म आदि प्रदत्त गुण थे तो वर्तमान समय में अर्जित गुण। मार्क्स के अनुसार प्रत्येक युग में समाज में दो वर्ग रहे हैं तथा अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा है।

(3) सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति सामाजिक है - सामाजिक स्तरीकरण कुछ व्यक्तियों तक सीमित न रहकर सम्पूर्ण समाज में व्याप्त रहता है। समाजीकरण के माध्यम से व्यक्ति सामाजिक मानदण्डों को सीखता है तथा चेतन रूप में स्तरीकरण को स्वीकार करता है। विभिन्न सामाजिक संस्थायें भी समाज में स्तरीकरण उत्पन्न करती हैं।

(4) सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न स्वरूप हैं - विभिन्न कालों एवं विभिन्न समाजों में सामाजिक स्तरीकरण का स्वरूप विभिन्न प्रकार का रहा है। भारत में जाति-प्रथा के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता है। यूरोप में वर्ग-व्यवस्था एवं अर्जित गुणों को अधिक महत्व दिया जाता है। मध्य युग में स्तरीकरण के दो प्रमुख स्वरूप रहे हैं—स्वामी तथा दास। तात्पर्य यह है कि सभी समाजों में स्तरीकरण किन्हीं सामान्य नियमों द्वारा न होकर स्थान, परिस्थिति तथा संस्कृति से प्रभावित रहा है।

(5) सामाजिक स्तरीकरण परिणामिक (Consequential) है - यूमिन के अनुसार स्तरीकरण परिणामिक है। दूसरे शब्दों में, यह असमानता उत्पन्न करता है। यह असमानता जीवन जीने के अवसर तथा जीवन-शैली में देखी जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीने के स्तर एवं शैली स्तरीकरण के स्वरूपों के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी व्यक्ति को कितनी शक्ति, सम्पत्ति एवं मानसिक सन्तोष प्राप्त होगा, यह समाज में उसके स्तर पर निर्भर है। प्रत्येक स्तर के जीवन-अवसर एवं जीवन-शैली में भिन्नता पाई जाती है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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